बहन बेटियों के खातों में सीधे नकद देना पड़ेगा भारी - SBI की रिपोर्ट

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की एक रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है कि राज्यों द्वारा महिला केंद्रित प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजनाओं की बढ़ती संख्या उनकी वित्तीय स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, इन योजनाओं के तहत महिलाओं के खातों में सीधे नकद हस्तांतरित किए जाने की प्रवृत्ति हाल के वर्षों में, विशेष रूप से चुनावों के दौरान, बढ़ी है। एसबीआई ने कहा है कि इन योजनाओं के कार्यान्वयन से राज्य सरकारों के वित्तीय स्वास्थ्य पर दबाव बढ़ सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन योजनाओं की कुल लागत बढ़कर 1.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई है, जो कई राज्यों की कुल राजस्व प्राप्तियों का 3 से 11 प्रतिशत है। कुछ राज्यों के लिए, जैसे ओडिशा, इन योजनाओं का भार उठाना संभव हो सकता है क्योंकि उनके पास गैर-कर राजस्व और ऋण की स्थिति बेहतर है, लेकिन अन्य राज्यों को वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
रिपोर्ट में कर्नाटक की "गृह लक्ष्मी योजना" का उदाहरण दिया गया है, जिसमें राज्य की महिला मुखिया को 2,000 रुपये प्रति माह दिए जाते हैं। इस योजना के लिए 28,608 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो राज्य की कुल राजस्व प्राप्तियों का 11 प्रतिशत है। वहीं, पश्चिम बंगाल की "लक्ष्मीर भंडार योजना", जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं को 1,000 रुपये का अनुदान देती है, की लागत 14,400 करोड़ रुपये है, जो राज्य की कुल राजस्व प्राप्तियों का 6 प्रतिशत है।
दिल्ली की "महिला सम्मान योजना" पर भी रिपोर्ट में चर्चा की गई है, जिसमें वयस्क महिलाओं को 1,000 रुपये प्रति माह देने का वादा किया गया है, और इस योजना पर करीब 2,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जो दिल्ली की राजस्व प्राप्तियों का 3 प्रतिशत है।
एसबीआई ने अपनी रिपोर्ट में यह सुझाव भी दिया है कि राज्यों को ऐसी योजनाओं की घोषणा करने से पहले अपनी वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन करना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार से मिलने वाले अनुदान के माध्यम से एक सार्वभौमिक आय हस्तांतरण योजना बनाना बेहतर विकल्प हो सकता है, क्योंकि इससे दी जाने वाली योजनाओं की स्थिरता और वित्तीय व्यावहारिकता सुनिश्चित हो सकती है। इस तरह की योजनाओं से बाजार को नुकसान पहुंचाने वाली सब्सिडी को कम करने में भी मदद मिल सकती है।
इस रिपोर्ट से यह साफ होता है कि महिलाओें के लिए नकद हस्तांतरण योजनाओं को चुनावी समर्थन और सशक्तिकरण के उद्देश्य से लागू किया जाता है, लेकिन इन योजनाओं की लंबी अवधि के लिए वित्तीय और राजकोषीय स्वास्थ्य पर विचार करना अत्यंत आवश्यक है।