राज की ऊंगली EVM पर ; निशाना अजित पवार पर

राज की ऊंगली EVM पर ; निशाना अजित पवार पर
Raj Thackeray and Ajit Pawar ; File photo

 मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने राज्य विधानसभा चुनावों के परिणामों पर संदेह जताया है और अप्रत्यक्ष रूप से ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है। मुंबई में मनसे के एक सभा में इस विषय पर उन्होंने अपनी बात रखी। इससे पहले, महाविकास आघाड़ी के नेताओं ने महायुति के अभूतपूर्व विजय के पीछे ईवीएम में छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। हालांकि, भाजपा से करीबी संबंध रखने वाले राज ठाकरे ने भी अब ईवीएम मशीन की विश्वसनीयता पर शंका जताई है।

राज ठाकरे ने इस दौरान कांग्रेस नेता बाळासाहेब थोरात और मनसे के पूर्व विधायक राजू पाटील का उदाहरण भी दिया। उन्होंने कहा कि बाळासाहेब थोरात, जो सात बार विधायक रहे थे और हर बार 70,000 से 80,000 वोटों से जीतते थे, इस बार मात्र 10,000 वोटों से हार गए। उन्होंने कहा कि 'कल लोग कहेंगे राज ठाकरे हार गए हैं, इसलिए ये बोल रहे हैं, लेकिन मैं क्या बोल रहा हूं, महाराष्ट्र की जनता बोल रही है।' राज ठाकरे ने यह भी कहा कि कई सत्ताधारी नेताओं ने उन्हें फोन किया और सबको एक झटका लगा है।

राज ठाकरे ने यह भी बताया कि भाजपा को इस बार 132 सीटें मिलीं, जबकि पिछले चुनाव में 105 सीटें थीं और 2014 में भाजपा को 122 सीटें मिली थीं। अजित पवार को 42 सीटें मिलीं, जबकि यह उम्मीद नहीं थी कि उन्हें इतनी सीटें मिलेंगी। उन्होंने कहा, 'जो इतने सालों से महाराष्ट्र में राजनीति कर रहे थे, उन्हें 10 सीटें मिल रही हैं, यह समझ से बाहर है।'

राज ठाकरे ने यह भी कहा कि कांग्रेस के सबसे अधिक 13 सांसद लोकसभा में जीतकर आए थे, और एक सांसद के क्षेत्र में  6 विधायक आते  हैं,  अब उनके  15 विधायक जीतकर आए। शरद पवार के 8 सांसद जीतकर आए थे और उनके 10 विधायक आते हैं। इस बार अजित पवार के 42 विधायक केवल चार महीने में कैसे जीत गए, यह एक शोध का विषय है। 

राज ठाकरे ने यह साफ तौर पर कहा कि लोग वोट देते हैं, लेकिन वह वोट कहीं गायब हो जाते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि राजू पाटील के चुनाव क्षेत्र में 1400 लोगों वाले एक गांव में राजू पाटील को शून्य वोट मिले। ऐसे बहुत से मामले हैं जहां निर्वाचित प्रतिनिधियों को खुद पर विश्वास नहीं है, यह एक बड़ा सवाल है।

राज ठाकरे का यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि महाराष्ट्र में चुनावी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं और यह मुद्दा आगामी राजनीति में और भी महत्वपूर्ण हो सकता है।

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