भाजपा की रणनीति या डर ?

लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा मार्च के प्रथम सप्ताह में कभी भी हो सकती है। चुनाव की तैयारियां सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं।लेकिन इस बात में कोई श़क नहीं की तीसरी बार सत्ता के लिए भारतीय जनता पार्टी पूरा ज़ोर लगा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सबसे ज़्यादा सक्रिय हैं। वे लगातार अन्य दलों को पार्टी के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इससे यह प्रश्न भी उठता है कि आख़िर अन्य दलों को जोड़ने के पीछे भाजपा की कोई रणनीति है या डर और मजबूरी है?  अगर मौजूदा प्रदर्शन को भी भाजपा दोहरा ले तो NDA आसानी से मई 2024 में सरकार बना सकती है। तो फिर नए गठबंधनों और पार्टियों में तोड़फोड़ की क्या ज़रूरत आ पड़ी है? नीतीश बाबू वापस आ ही गए हैं। अकाली दल और तेलुगू देशम पार्टी को NDA में वापस लेने की क़वायद चल रही है। शिवसेना और NCP को तोड़कर शरद पवार और उद्धव ठाकरे का मानमर्दन करने में भाजपा सफल रही। क्या भाजपा को 2019 के प्रदर्शन की उम्मीद नहीं है? क्या यह डर अन्य दलों को नज़दीक ला रहा है? दूसरा कारण यह हो सकता है कि भाजपा “अबकी बार चार सौ पार” के नारे को साकार करना चाहती है। इसके लिए कुछ और दलों की ज़रूरत पड़ सकती है। ख़ासकर दक्षिण भारत के राज्यों में भाजपा कमजोर है और वहाँ सहारे की ज़रूरत है। इन सब चीज़ों को देखते हुए ऐसा लगता है भाजपा पूरे देश में अपना परचम फहराने के लिए तमाम तरह की रणनीति अपना रही है। सूत्रधार रहे नीतीश बाबू के पलटी मारने से विपक्षी गठबंधन इंडिया अलायन्स की हवा ही निकालने लगी है। ऐसी स्थिति में भाजपा की रणनीति यह होगी कि ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में सीटें जीते। यह भी क़यास लगाए जा रहे हैं  कि कुछ कानूनों को पास करने के लिए संसद में दो तिहाई बहुमत की ज़रूरत है, इसलिए भाजपा 400 के आंकड़े का लक्ष्य लेकर चल रही है। बहरहाल जो भी हो भाजपा की तैयारी देखकर यह लगता है कि अगले लोकसभा चुनाव में मुक़ाबला रोचक होगा।