कांग्रेस का अकेले सत्ता में आना मुश्किल; शशि थरूर की दो टूक

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने दिल्ली में पार्टी की वापसी को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातें साझा की हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में पार्टी का फिर से सत्ता में आना मुश्किल है, खासकर जब कांग्रेस तीन बार से सत्ता से बाहर है। थरूर ने कांग्रेस के भविष्य पर चर्चा करते हुए यह माना कि पार्टी की स्थिति आसान नहीं है, क्योंकि जब एक राज्य में तीन बार चुनाव हार जाते हैं, तो लोगों के पास दूसरे विकल्प होते हैं और वे उन विकल्पों की तलाश करते हैं। इस स्थिति को स्वीकार करते हुए थरूर ने इसे एक बड़ा चैलेंज बताया।
शशि थरूर ने यह भी कहा कि कांग्रेस हर राज्य में एक-दो सीटों के साथ मौजूद है, लेकिन कम्यूनिस्ट और समाजवादी पार्टियां तो अब एक-आध राज्य तक ही सीमित हो गई हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कम्यूनिस्ट पार्टी सिर्फ पश्चिम बंगाल और केरल तक सिमटकर रह गई है, जहां बंगाल में उनकी लोकसभा में कोई सीट नहीं है, और केरल में भी उनकी स्थिति कमजोर हो चुकी है, हालांकि विधानसभा में उनकी कुछ प्रेजेंस अभी भी है। वहीं, समाजवादी पार्टी सिर्फ उत्तर प्रदेश तक ही सिमट कर रह गई है, बाकी समाजवादी दल समय के साथ समाप्त हो गए हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के संदर्भ में थरूर ने कहा कि तीन बार हारने के बाद दिल्ली में कांग्रेस का पुनर्निर्माण एक कठिन कार्य है। उन्होंने कहा कि जब आप बार-बार हारते हैं, तो यह समझना मुश्किल हो जाता है कि लोग क्यों दूसरे विकल्पों की ओर बढ़ते हैं। लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह सिर्फ कांग्रेस के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य पार्टियों के लिए भी एक चुनौती है।
थरूर ने आगे यह भी बताया कि कांग्रेस को अब विभिन्न राज्यों में गठबंधन की राजनीति अपनानी पड़ेगी। उदाहरण के तौर पर उन्होंने यूपी का जिक्र किया, जहां कांग्रेस 1996 तक मजबूत थी, लेकिन अब उसकी संभावना काफी कम हो चुकी है। यूपी में कांग्रेस को समाजवादी पार्टी या किसी अन्य दल के साथ गठबंधन करना होगा। बिहार और तमिलनाडु में भी यही स्थिति है, जहां कांग्रेस गठबंधन के जरिए अपनी स्थिति बनाए रख सकती है।
उन्होंने कहा कि कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस जो मजबूती दिखा सकी है, वह पश्चिम बंगाल और बिहार में नहीं दिखा पाएंगे, लेकिन दूसरी रणनीतियों के जरिए कांग्रेस वहां भी अपनी पहचान बना सकती है। थरूर ने यह भी कहा कि अगर देश में सरकार का कोई बदलाव लाना है, तो यह जरूरी नहीं कि कांग्रेस अकेले ही आगे आए। कांग्रेस अन्य दलों के साथ गठबंधन करके भी बदलाव की दिशा में कदम बढ़ा सकती है, बशर्ते उनकी विचारधारा उन दलों से मेल खाती हो।