भोपाल के नवाबों और बेगमों का इतिहास मिटाने की साजिश- कांग्रेस का आरोप

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने हाल ही में घोषणा की है कि राजधानी भोपाल में राजा भोज और विक्रमादित्य के नाम पर दो प्रमुख द्वार बनाए जाएंगे। इस ऐलान के बाद सियासत का नया दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस ने इस पर आरोप लगाया है कि यह कदम जानबूझकर भोपाल के नवाबों और बेगमों के इतिहास को मिटाने की साजिश का हिस्सा है। कांग्रेस का कहना है कि विक्रमादित्य के नाम से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उनका भोपाल में कोई खास योगदान नहीं था।
कांग्रेस के प्रवक्ता अब्बास हफीज ने कहा, "भोपाल का नवाबों और बेगमों से गहरा इतिहास जुड़ा है। बेगम सुल्तान जहां महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए कई कदम उठाए थे।" कांग्रेस का आरोप है कि जानबूझकर एक खास पक्ष के इतिहास को दबाने की कोशिश की जा रही है। अब्बास हफीज ने मुख्यमंत्री को एक चिट्ठी लिखने की भी बात कही है।
इस बीच, बीजेपी ने कांग्रेस को सनातन संस्कृति विरोधी करार दिया। मंत्री विश्वास सारंग ने कहा, "जब भी हम सनातन संस्कृति से जुड़ा कोई कदम उठाते हैं, कांग्रेस को दर्द होने लगता है।" इस फैसले पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग मुख्यमंत्री के फैसले को सही मानते हैं, जबकि कुछ का कहना है कि भोपाल के नवाब पाकिस्तान के साथ विलय की बात कर रहे थे, और आजादी के दो साल बाद ही भोपाल का भारत में विलय हो पाया। ऐसे में नवाबों के नाम पर किसी द्वार का नाम रखना उचित नहीं है।
वहीं, शहर के मुस्लिम समुदाय का कहना है कि उन्हें राजा भोज, रानी कमलापति और विक्रमादित्य से कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन भोपाल के नवाबों और बेगमों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। इतिहासकार आरिफ मिर्जा का कहना है कि भोपाल के इतिहास में राजा भोज, रानी कमलापति के साथ-साथ नूरजहां बेगम और सुल्तान जहां बेगम का भी अहम योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि 100 साल से अधिक समय तक भोपाल में बेगमों का शासन एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, और बेगम सुल्तान जहां का महिला शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए योगदान भी इतिहास में दर्ज है। इसलिए सभी को समान स्थान मिलना चाहिए।