बीड के गाँव में गिरे उल्कापिंड की जाँच शुरू

महाराष्ट्र के बीड जिले के खलवत निमगांव गांव में मंगलवार को दो वस्तुएं गिरीं, जो पहली नजर में उल्कापिंड जैसी दिखाई दीं। एक पिंड ने किसान भीकाजी अंभोरे के घर की टिन की छत को भेदते हुए अंदर गिरा, जबकि दूसरा पिंड खेत में पाया गया। इस घटना ने स्थानीय अधिकारियों और वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया, और इसके रिसर्च के लिए एक सैंपल लिया गया।
छत्रपति संभाजीनगर के एमजीएम के एपीजे अब्दुल कलाम 'एस्ट्रोस्पेस एंड साइंस सेंटर' के निदेशक डॉक्टर श्रीनिवास औंधकर ने कहा कि तहसील कार्यालय ने इस घटना के बारे में हमें सूचित किया था। हमने मौके पर जाकर पिंड का निरीक्षण किया और आगे के अध्ययन के लिए उसका सैंपल लिया। इस पिंड का वजन लगभग 280 ग्राम है और अब इसे लेकर हम विस्तृत अध्ययन करेंगे। इसके बाद एक रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंप दी जाएगी।
यह घटना इस बात को पुनः साबित करती है कि पृथ्वी पर उल्कापिंडों के प्रभाव से महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। एक और प्रसिद्ध उदाहरण है महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित लोनार झील। यह झील लगभग 50,000 साल पहले उल्कापिंड के प्रभाव से बनी थी। लोनार झील का पानी समुद्र के पानी से सात गुना अधिक खारा है, और यह न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके प्राकृतिक और सांस्कृतिक पहलू भी अद्वितीय हैं।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने लोनार झील और चंद्रमा की सतह के बीच समानताएं पाई हैं। आईआईटी बॉम्बे के शोध में इस झील की मिट्टी में ऐसे खनिज पाए गए हैं जो चंद्रमा की चट्टानों से मेल खाते हैं। झील के विद्युत-चुंबकीय गुणों के कारण इसके कुछ हिस्सों में कम्पास भी काम नहीं करते, जो वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य बना हुआ है। नवंबर 2020 में लोनार झील को रामसर साइट के रूप में मान्यता दी गई थी, जो इस अद्वितीय प्राकृतिक धरोहर की वैश्विक महत्ता को दर्शाता है।