दर्दनाक कहानियों के साथ जंजीरों में जकड़े लौटे भारतीय,तीसरा विमान भी पहुंचा अमृतसर

दर्दनाक कहानियों के साथ जंजीरों में जकड़े लौटे भारतीय,तीसरा विमान भी पहुंचा अमृतसर
A young man who was deported

अमेरिका से अवैध भारतीय अप्रवासियों के विमान का तीसरा जत्था अमृतसर पहुंच चुका है, जिसमें कुल 112 लोग हैं. विमान रविवार (16 फरवरी 2025) को रात 10:09 बजे एयरपोर्ट पर लैंड हुआ. अमेरिका से भारत भेजे गए 112 लोगों में 44 हरियाण से, 33 गुजरात से, 31 पंजाब से, दो उत्तर प्रदेश और एक-एक उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से एक-एक हैं.

इमिग्रेशन, वेरिफिकेशन और पृष्ठभूमि जांच सहित सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद निर्वासितों को उनके घर जाने की अनुमति दी जाएगी. निर्वासितों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए परिवहन की व्यवस्था की गई है. 

इससे पहले दूसरा जत्था 116 अवैध प्रवासियों को लेकर  शनिवार (15 फरवरी, 2025) देर रात अमृतसर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा था ,  जिससे इन लोगों का अमेरिका में बेहतर भविष्य बनाने का सपना टूट गया। इन प्रवासियों की स्थिति एक कड़वी सच्चाई का उदाहरण बन गई है, जिसमें जीवनभर की मेहनत और एक बेहतर जीवन के सपने ने उन्हें एक ऐसी यात्रा पर भेजा, जो न सिर्फ दर्दनाक थी, बल्कि अब उन सपनों को खोने का समय था।

यह लोग अमेरिका में बेहतर जिंदगी की उम्मीद लिए पहाड़ियों, जंगलों और समुद्र के खतरनाक रास्तों से होकर गए थे, लेकिन इनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। उनकी यात्रा को अंततः अमेरिकी पुलिस ने सीमा पर ही खत्म कर दिया। अब, इन युवकों के चेहरे पर अमेरिका का सपना टूटने की मायूसी और पछतावा साफ देखा जा सकता है।

'दूर भेजने पर हो रहा है पछतावा'

 नवांकोट के निवासी मंगल सिंह थिंड अपने पोते जसनूर सिंह को लेने एयरपोर्ट पहुंचे थे। उन्होंने कहा, "एजेंट ने हमें बताया था कि हमारे बच्चे को सीधे अमेरिका भेजा जाएगा, लेकिन उसे कोलंबिया ले जाया गया और 3.5 महीने तक वहीं रखा गया। फिर उसे पनामा भेजा गया, जहां उसे घने जंगलों को पार करना पड़ा। हम रोज उससे दो बार बात करते थे। उसकी हालत बहुत खराब थी, वह थका हुआ और चोटिल था। उसे दूर भेजने का पछतावा हो रहा है।"

'तीन घंटे के भीतर ही पुलिस ने पकड़ लिया'

फिरोजपुर के रहने वाले सौरव ने भी अपनी आपबीती बताई। उसने कहा, "अमेरिका में घुसने के बाद मुझे तीन घंटे के भीतर ही पकड़ लिया गया। यह पूरी परेशानी 17 जनवरी को शुरू हुई थी, जब एक एजेंट ने मुझसे 45 लाख रुपये लेकर मुझे अमेरिका भेजने का वादा किया। पहले मुझे मलेशिया भेजा गया, फिर मुंबई, एम्स्टर्डम, पनामा, तापचूला और अंत में मैक्सिको सिटी। वहां से 3-4 दिन की यात्रा के बाद अमेरिका पहुंचा।"

लेकिन, यहां भी उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ। सीमा पार करने के बावजूद पुलिस ने उन्हें तुरंत पकड़ लिया और उन्हें पुलिस स्टेशन भेज दिया। फिर उन्हें एक शिविर में भेजा गया, जहां वे 15-18 दिन तक रहे। उन्होंने बताया, "किसी ने हमारा बयान नहीं लिया, हमारी अपील नहीं सुनी, हमारे हाथ-पैर बांध दिए गए और हमारे फोन जब्त कर लिए गए। जब हमें विमान में सवार कराया गया, तब हमें बताया गया कि हमें निर्वासित किया जा रहा है।"

'भारत में नहीं मिल रही थी नौकरी'

एक और निर्वासित, गुरबचन सिंह के पिता जतिंदर पाल सिंह ने कहा, "हमने अपने बेटे को अमेरिका भेजने के लिए 50 लाख रुपये का भुगतान किया, लेकिन हमें नहीं पता था कि उसे डंकी रूट से ले जाया जाएगा। हम भारत में अपने बेटे को कोई अच्छा काम नहीं दिला पा रहे थे, और इसी वजह से उसे विदेश भेजने का निर्णय लिया। हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था।"

यह कहानी उन लाखों युवाओं की है, जो बेहतर भविष्य की खोज में विदेश जाने का जोखिम उठाते हैं। इन प्रवासियों की यात्राएं न सिर्फ उनकी दुखों की गाथा हैं, बल्कि यह भी सवाल उठाती हैं कि कैसे मानव तस्करी के नेटवर्क उनका जीवन बर्बाद कर देते हैं। इनकी संघर्षों और अपार बलिदान को देखते हुए, यह जरूरी है कि समाज और सरकार मिलकर ऐसे नेटवर्क के खिलाफ ठोस कदम उठाएं, ताकि किसी और को ऐसा दर्द न सहना पड़े।