एग्जिट पोल को सिर्फ एक दिन का कॉमेडी शो मानें

भारत में चुनावी मौसम आते ही एक और चीज़ जो धूम मचाती है, वह है एग्जिट पोल्स। ये पोल्स जो आमतौर पर चुनाव खत्म होने के तुरंत बाद जारी होते हैं, एक तरह से लोगों के मन में उम्मीदों और भविष्य के परिणामों का आभास उत्पन्न करते हैं। लेकिन क्या इन एग्जिट पोल्स की कोई वास्तविकता है? क्या इन पर विश्वास किया जा सकता है? सच कहें तो इनकी विश्वसनीयता दिन-ब-दिन सवालों के घेरे में आ रही है।

आधिकारिक चुनाव परिणामों के सामने आने से पहले ही मीडिया चैनल्स और एजेंसियां एग्जिट पोल्स का बखूबी प्रचार करती हैं। इनमें से अधिकतर पोल्स या तो असंवैधानिक होते हैं, या फिर पूरी तरह से भ्रामक होते हैं। जब से इनकी शुरुआत हुई है, कई बार एग्जिट पोल्स और असली परिणामों के बीच भारी अंतर देखा गया है। फिर भी, मीडिया इन पोल्स को ऐसे प्रस्तुत करता है जैसे ये चुनावी परिणामों का तय करने वाला अंतिम वाक्य हों। 

एग्जिट पोल्स को लेकर विशेषज्ञों का भी कहना है कि ये पोल्स पूरी तरह से वैज्ञानिक नहीं होते। चुनाव के परिणाम प्रभावित करने वाले कई अन्य कारक होते हैं, जैसे क्षेत्रीय मुद्दे, वोटरों की मानसिकता, और स्थानीय घटनाएँ, जिन्हें पोल्स में ठीक से मापना लगभग असंभव है। इसके बावजूद, ये पोल्स समय-समय पर जनता और मीडिया दोनों को भ्रमित करते हैं।

इसलिए, एग्जिट पोल्स को गंभीरता से न लें। ये एक तरह की एक दिन की "कॉमेडी" से ज्यादा कुछ नहीं हैं। चुनावी परिणाम आने तक इन पोल्स का कोई मूल्य नहीं है। अगर आप भी इन पोल्स पर विश्वास करते हैं, तो खुद को धोखा दे रहे हैं। बेहतर होगा कि इन पोल्स को हंसी-मजाक के रूप में लें, क्योंकि आखिरकार वास्तविक परिणाम ही मायने रखते हैं, न कि ये आंकड़े जो कभी भी सही साबित नहीं होते।