फ़िल्म समीक्षा : द साबरमती रिपोर्ट

फ़िल्म समीक्षा : द साबरमती रिपोर्ट
फ़िल्म का पोस्टर

रेटिंग- * * *

जितेंद्र कुमार

‘12वीं फेल’ की शानदार सफलता के बाद, विक्रांत मैसी एक बार फिर बड़े पर्दे पर ‘द साबरमती रिपोर्ट’ के जरिए लौटे हैं। इस फिल्म में उनके साथ रिद्धि डोगरा और राशि खन्ना नजर आती हैं। एकता कपूर और धीरज सरना की इस पेशकश का दावा है कि यह गोधरा ट्रेन कांड जैसे ऐतिहासिक और विवादित घटनाक्रम पर एक नई दृष्टि प्रस्तुत करती है। फिल्म भारतीय मीडिया और पत्रकारिता जगत के संघर्ष और द्वंद्व को भी उजागर करती है।

कहानी का सार:

फिल्म 2002 में गुजरात में हुए गोधरा कांड पर आधारित है, जहां साबरमती एक्सप्रेस में आग लगने से 59 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी। यह कहानी पत्रकार समर कुमार (विक्रांत मैसी) के नजरिए से गढ़ी गई है, जो इस हादसे की सच्चाई को उजागर करने की कोशिश करता है। कहानी में एक और दिलचस्प मोड़ तब आता है, जब महिला पत्रकार अमृता गिल (राशि खन्ना) इस जांच में शामिल होकर समर के अधूरे प्रयासों को नई दिशा देती है। फिल्म हिंदी और अंग्रेजी मीडिया के बीच वैचारिक टकराव को भी सामने लाती है, जो इसे और भी प्रासंगिक बनाता है।

अभिनय का जादू:

विक्रांत मैसी ने अपनी भूमिका में गहराई और सहजता का ऐसा मिश्रण प्रस्तुत किया है, जो दर्शकों को बांधे रखता है। राशि खन्ना ने अपने किरदार में एक खास मजबूती और आकर्षण जोड़ा है, वहीं रिद्धि डोगरा ने बॉस लेडी के किरदार को पूरी शिद्दत से निभाया है। इन तीनों कलाकारों की केमिस्ट्री फिल्म को वास्तविक और प्रभावशाली बनाती है।

निर्देशन और तकनीकी पहलू:

धीरज सरना का निर्देशन सराहनीय है, लेकिन कुछ जगहों पर अनुभव की कमी झलकती है। ट्रेन के जलने जैसे दृश्यों में वीएफएक्स का अच्छा उपयोग किया गया है, लेकिन सिनेमैटोग्राफी में गहराई की कमी महसूस होती है। हालांकि, बैकग्राउंड स्कोर ने फिल्म की कमजोरियों को काफी हद तक संभाल लिया है।

फिल्म की खासियत और खामियां:

फिल्म जहां गोधरा कांड की सच्चाई पर एक नई दृष्टि प्रस्तुत करती है, वहीं यह दो पीढ़ियों के पत्रकारों के संघर्ष और दुविधा को भी सामने लाती है। हालांकि, कहीं-कहीं कहानी अपनी राह से भटकती नजर आती है, और लेखनी में थोड़ी कसावट की कमी है। फिर भी, यह फिल्म दर्शकों को बोर नहीं करती और एक गंभीर मुद्दे को मनोरंजक तरीके से पेश करती है।

परिणाम:

‘द साबरमती रिपोर्ट’ न केवल एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित फिल्म है, बल्कि यह पत्रकारिता और मानवीय संवेदनाओं की जटिलता को भी गहराई से पेश करती है। यह फिल्म गोधरा कांड के पीड़ितों को श्रद्धांजलि के रूप में देखी जा सकती है। भारतीय इतिहास और पत्रकारिता में रुचि रखने वाले दर्शकों के लिए यह फिल्म जरूर देखने लायक है।