बैंक ग्राहकों से क्रेडिट कार्ड बकाया पर 30 प्रतिशत से अधिक ब्याज वसूल सकेंगे

बैंक ग्राहकों से क्रेडिट कार्ड बकाया पर 30 प्रतिशत से अधिक ब्याज वसूल सकेंगे
File phot of Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के 16 साल पुराने एक फैसले को खारिज कर दिया है, इसके बाद बैंक ग्राहकों से क्रेडिट कार्ड बकाया पर 30 प्रतिशत से अधिक ब्याज वसूल सकेंगे। आयोग ने अपने फैसले कहा था कि अत्यधिक ब्याज दर वसूलना अनुचित है। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि एनसीडीआरसी की यह टिप्पणी कि 30 प्रतिशत प्रति वर्ष से अधिक ब्याज दर एक अनुचित है, "अवैध" है, भारतीय रिजर्व बैंक की स्पष्ट व सुस्पष्ट शक्तियों में हस्तक्षेप है।"

अदालत ने कहा कि यह फैसला बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की विधायी मंशा के विपरीत है। सर्वोच्च न्यायालय की राय में, बैंकों ने क्रेडिट कार्ड धारकों को धोखा देने के लिए किसी भी तरह से कोई गलत बयानी नहीं की थी और "भ्रामक व्यवहार" और अनुचित पद्धति की पूर्व शर्तें स्पष्ट थीं।

अदालत ने कहा कि एनसीडीआरसी को बैंकों और क्रेडिट कार्ड धारकों के बीच हुए अनुबंध की शर्तों को पुनः लिखने का कोई अधिकार नहीं है, जिस पर दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से सहमति व्यक्त की थी। पीठ ने 20 दिसंबर के अपने फैसले में कहा, "हम भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से दी गई दलीलों से सहमत हैं कि वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए आरबीआई को किसी बैंक के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देने का सवाल ही नहीं उठता है। आरबीआई को बैंकिंग विनियमन अधिनियम में निहित प्रावधानों और उसके तहत जारी परिपत्रों/निर्देशों के विपरीत, पूरे बैंकिंग क्षेत्र पर या किसी एक विशेष बैंक के संबंध में ब्याज दर पर कोई सीमा लगाने का निर्देश देने का कोई सवाल ही नहीं है।"


शीर्ष अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को अनुचित अनुबंधों को रद्द करने का पूरा अधिकार है, जो एकतरफा रूप से प्रभावी हैं या जिनमें अनुचित और अविवेकपूर्ण शर्तें शामिल हैं, लेकिन बैंकों की ओर से ली जाने वाली ब्याज दर, जो वित्तीय विवेक और आरबीआई के निर्देशों के आधार पर निर्धारित की जाती है, और समय-समय पर क्रेडिट कार्ड धारकों को सूचित की जाती है, अविवेकपूर्ण या एकतरफा नहीं हो सकती।


पीठ ने कहा, "क्रेडिट कार्ड धारकों को विधिवत जानकारी दी जाती है और उन्हें समय पर भुगतान करने तथा देरी पर जुर्माना लगाने सहित उनके विशेषाधिकारों और दायित्वों के बारे में जागरूक किया जाता है।" सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्रेडिट कार्ड सुविधा का लाभ उठाते समय, ग्राहकों को ब्याज दर सहित सबसे महत्वपूर्ण नियमों और शर्तों के बारे में अवगत कराया गया था और वे संबंधित बैंकों की ओर से जारी शर्तों का पालन करने के लिए सहमत हुए थे।

फैसले में कहा गया कि चूंकि क्रेडिट कार्ड परिचालन की शर्तें शिकायतकर्ताओं को ज्ञात थीं और इस बारे में बैंकिंग संस्थाओं ने क्रेडिट कार्ड जारी करने से पहले ही उन्हें बता दिया था, इसलिए राष्ट्रीय आयोग ब्याज दर सहित शर्तों की जांच नहीं कर सकता था। फैसले में कहा गया है, "आरबीआई ने मामले के गुण-दोष के आधार पर भी यह स्पष्ट कर दिया है कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि किसी बैंक ने आरबीआई की ओर से जारी नीति निर्देशों के विपरीत काम किया है।"

यह बात रिकार्ड में आई कि मामले में पीड़ित पक्ष ने ब्याज दर या उच्च बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग दर के विरुद्ध किसी भी आपत्ति के लिए वैधानिक प्राधिकारी, भारतीय रिजर्व बैंक से संपर्क नहीं किया। यह मामला एनडीसीआरसी के 7 जुलाई, 2008 के आदेश के खिलाफ सिटीबैंक, अमेरिकन एक्सप्रेस, एचएसबीसी और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की ओर से दायर अपीलों से जुड़ा है, जिसमें कहा गया था कि 36 प्रतिशत से 49 प्रतिशत प्रति वर्ष की ब्याज दरें बहुत अधिक हैं और उधारकर्ताओं का शोषण करने के समान हैं।