गंगा जल एकदम शुद्ध ; वैज्ञानिक ने जांच के बाद किया दावा

गंगा जल एकदम शुद्ध ; वैज्ञानिक ने जांच के बाद किया दावा
Mahakumbh devotees ; File Photo

महाकुंभ के दौरान गंगा के जल की शुद्धता को लेकर लगातार उठ रहे सवालों के बीच, देश के प्रसिद्ध पद्मश्री वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने गंगा के जल की शुद्धता को लेकर एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने दावा किया कि गंगा का जल केवल स्नान के लिए ही नहीं, बल्कि अल्कलाइन वाटर के बराबर शुद्ध है। इस शोध को उन्होंने संगम, अरैल और पांच अन्य प्रमुख घाटों से गंगाजल का नमूना लेकर अपनी प्रयोगशाला में जांचने के बाद प्रमाणित किया। डॉ. सोनकर का कहना है कि महाकुंभ में 57 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के गंगा में स्नान करने के बाद भी जल की शुद्धता पर कोई असर नहीं पड़ा है। 

मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम के साथ वैज्ञानिक विमर्श करने वाले डॉ. सोनकर ने अपनी प्रयोगशाला में गंगा के जल की जांच की और इसके परिणामों से संतुष्ट होते हुए उन सभी लोगों को चुनौती दी, जिन्होंने गंगा के जल पर सवाल उठाए थे। उनका कहना है, "जो लोग गंगा जल की शुद्धता पर संदेह करते हैं, वे मेरे पास आकर हमारे प्रयोगशाला में जांच कर सकते हैं और पूरी तरह से संतुष्ट हो सकते हैं।"

डॉ. सोनकर, जिन्होंने जापान में मोती उगाने में वर्चस्व को चुनौती दी थी, ने बताया कि तीन महीने के निरंतर शोध के बाद यह साबित हुआ कि गंगा का जल सबसे शुद्ध है और इसमें स्नान से किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता। गंगा जल की शुद्धता का कारण इसके अंदर मौजूद बैक्टीरियोफेज (बैक्टीरिया खाने वाले वायरस) हैं, जो जल की शुद्धता को बनाए रखते हैं। 

जब प्रयोगशाला में जल के नमूनों को 14 घंटों तक इन्क्यूबेशन तापमान पर रखा गया, तो इनमें किसी भी प्रकार की हानिकारक बैक्टीरिया की वृद्धि नहीं हुई। डॉ. सोनकर का कहना था कि गंगा का जल न केवल स्नान के लिए सुरक्षित है, बल्कि इसके संपर्क में आने से त्वचा संबंधी रोग भी नहीं होते। 

गंगा जल के नमूनों की जांच करने के बाद, डॉ. सोनकर ने बताया कि 5 प्रमुख घाटों से एकत्रित जल के नमूनों में न तो बैक्टीरिया वृद्धि हुई और न ही पीएच स्तर में कोई गिरावट आई। शोध में यह भी सामने आया कि गंगा जल में 1100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज मौजूद हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं और जल को दूषित होने से बचाते हैं। 

कुछ संस्थाओं और लोगों द्वारा गंगा जल के आचमन और स्नान के अयोग्य होने के दावे को डॉ. सोनकर ने पूरी तरह से खारिज कर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि गंगा जल की अम्लीयता (पीएच) सामान्य से बेहतर है और उसमें किसी भी प्रकार की दुर्गंध या जीवाणु वृद्धि नहीं पाई गई। गंगाजल के सैंपल का पीएच स्तर 8.4 से लेकर 8.6 तक पाया गया, जो काफी अच्छा और शुद्ध माना जाता है।

डॉ. अजय कुमार सोनकर, प्रयागराज के नैनी निवासी, एक स्वतंत्र शोधकर्ता और शीर्ष वैज्ञानिक हैं। कृत्रिम रूप से मोती उगाकर उन्होंने पूरे देश के वैज्ञानिकों को चकित किया है। एक माह पहले, केंद्र सरकार ने इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है, जो उनके उत्कृष्ट शोध कार्यों और योगदान का प्रमाण है।